नयी दिल्ली, 27 नवंबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने कॉमेडियन समय रैना, विपुल गोयल, बलराज घई, सोनाली ठक्कर और निशांत तंवर को निर्देश दिया है कि वे अपने प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल दिव्यांग लोगों, जिनमें स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) से पीड़ित लोग भी शामिल हैं, उनके लिए जागरूकता फैलाने और फंड जुटाने के लिए करें।
दूसरी ओर न्यायालय ने केंद्र सरकार से विकलांग लोगों की सुरक्षा के लिए एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम जैसा एक खास कानून लाने पर भी विचार करने को कहा। मुख्य न्यायाधीश ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, “आप विकलांग लोगों के लिए एससी-एसटी अधिनियम जैसे कानून के बारे में क्यों नहीं सोचते?”
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायाधीश जॉयमाल्या बागची की एक पीठ ने गुरूवार को क्योर एसएमए फाउंडेशन की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश दिये। इस याचिका में शिकायत की गई थी कि रैना और दूसरे कॉमेडियन ने अपनी ऑनलाइन सामग्री में दिव्यांग लोगों का मजाक उड़ाया है।
न्यायालय ने कहा कि कॉमेडियन को अपने प्लेटफॉर्म पर दिव्यांग लोगों को बुलाना चाहिए और लोगों के सामने उनकी सफलता और उपलब्धियों की कहानियां साझा करनी चाहिए। पीठ ने आदेश दिया कि हर महीने ऐसे दो प्रोग्राम होने चाहिए और यह आमदनी दिव्यांग लोगों के इलाज में मदद के लिए एक फंड में जमा की जानी चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उम्मीद है कि अगली सुनवाई से पहले इस पर अमल कर दिया जायेगा।
एनजीओ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने कहा कि यह मुद्दा सिर्फ पैसे का नहीं है, बल्कि सम्मान और जागरूकता का भी है, क्योंकि एसएमए का इलाज बहुत महंगा है और ज़्यादातर दवाएं बाहर से मंगाई जाती हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि कॉमेडियन विकलांग लोगों के साथ जागरूकता प्रोग्राम करें, जिस पर न्यायालय ने सहमति दे दी। पीठ ने ऑनलाइन असंवेदनशील सामग्री में बढ़ोत्तरी पर भी चिंता जताई।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा, “आज इनका निशाना विकलांग लोग हैं, कल महिलाएं हो सकती हैं, फिर बच्चे, फिर वरिष्ठ नागरिक समाज कहां जायेगा?”
न्यायालय मामले की प्रगति की समीक्षा के बाद अगली सुनवाई करेगा।
