विभागीय जांच के बिना नहीं कर सकते कठोर सजा से दंडित

जबलपुर। हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि विभागीय जांच के बिना कठोर सजा से दंडित किया जाना प्राकृतिक न्याय के प्रमुख सिद्धांत का उल्लंघन है। हाईकोर्ट जस्टिस दीपक खोत ने उक्त आदेश के साथ पुलिस विभाग में पदस्थ आरक्षक के बर्खास्तगी के आदेश को निरस्त कर दिया है।

भोपाल निवासी सुभाष गुर्जर की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि वह पुलिस विभाग में आरक्षक के पद पर पदस्थ था। उसके खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज होने के कारण बिना सुनवाई के अवसर दिये सेवा से बर्खास्त कर दिया। उसके खिलाफ साजिश के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज किये गये थे। जिसमें से कुछ में वह दोषमुक्त हो गया और कुछ लंबित है। किसी भी प्रकरण में उसे दोषी करार नहीं दिया गया है। बर्खास्तगी की कार्यवाही करने के पूर्व उसे कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया गया था। सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966 और पुलिस नियमों के अंतर्गत किसी विभागीय जाँच के बिना बर्खास्तगी का आदेश पारित करना अवैधानिक है।

सरकार की तरफ से तर्क दिया गया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 311 (2) के संवैधानिक अधिदेश को लागू करते हुए याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया है। याचिकाकर्ता को पुलिस कांस्टेबल के पद में होने के बावजूद आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण निलंबित कर दिया गया था।

एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि अनुच्छेद 309 और 311 सरकारी कर्मचारी को किसी भी अन्यायपूर्ण भेदभाव या विभागीय कार्यवाही से सुरक्षा प्रदान करते हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 311(2) सामान्य नियम के अपवादों में प्रावधान है कि जांच का सामान्य नियम ऐसे कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा जिन्हें किसी आपराधिक मामले में दोषसिद्धि के लिए दंडित किया गया हो। राष्ट्रपति या राज्यपाल मामला में जिसमें इस बात से संतुष्ट हैं कि राज्य की सुरक्षा के हित में ऐसी जांच नहीं की जानी है। प्राधिकारी ने नियमों के तहत जांच न करने का कोई स्पष्टीकरण या कारण नहीं दिया है। यह एक सामान्य नियम है कि बड़ी सजा देने के लिए विभागीय जाँच अनिवार्य है। कर्मचारी को अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का बचाव करने का अवसर नहीं मिलना कानून के प्राकृतिक न्याय के प्रमुख सिद्धांत का भी उल्लंघन करता है। एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में राहतकारी आदेश जारी करते हुए उसकी बर्खास्तगी के आदेश को निरस्त करते हुए विभागीय जांच प्रारंभ करने की स्वतंत्रता प्रदान की है।

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