यह ठीक है कि भारत अभी युवा देश है. हमारे देश की 65 फ़ीसदी आबादी 18 से 35 वर्ष की उम्र की है, लेकिन यह स्थिति हमेशा नहीं रहने वाली. 10 वर्षों बाद स्थिति बदलेगी. इसलिए हमारे देश को वरिष्ठ नागरिकों की चिंता अभी से करने की आवश्यकता है. इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के घोषणा पत्र की यह योजना महत्वपूर्ण है कि भविष्य में सभी 70 वर्ष के बुजुर्गों को आयुष्मान कार्ड की सुविधा मिलेगी. वैसे सभी दलों के घोषणा पत्रों में इस तरह की योजनाएं लागू करने का आश्वासन है. इसलिए सरकार किसी भी गठबंधन की बनें जनकल्याणकारी योजनाओं के मामले में आम जनता का नुकसान नहीं होने वाला है. बहरहाल,वरिष्ठ नागरिकों के संदर्भ में एक एनजीओ रिपोर्ट कहती है कि उन्हें सबसे ज्यादा असुरक्षा अपने स्वास्थ्य को लेकर रहती है. बढ़ती उम्र के साथ स्वास्थ्य की समस्याएं आती हैं. आजकल किसी भी बीमारी का इलाज बहुत महंगा होता है. इस दृष्टि से यह सुझाव दिया जा रहा है कि आयुष्मान कार्ड योजना के तहत उम्र 70 की बजाय 65 होनी चाहिए.दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने एक और चुनावी गारंटी दी है कि अब 70 वर्ष की उम्र या उससे अधिक के प्रत्येक नागरिक को ‘आयुष्मान’योजना का लाभ मिलेगा. वे 5 लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त ही करा सकेंगे,इसमें थोड़ी सी कसर है जो वरिष्ठ नागरिकों को खटक रही है.प्रधानमंत्री की भावना सचमुच वरिष्ठ नागरिकों को स्वास्थ्य कवर देने की थी, तो इस आयु-वर्ग के दायरे में 65 साल के वरिष्ठ नागरिक भी रखे जा सकते थे, क्योंकि इस उम्र तक बीमारियां पकने लगती हैं और इलाज की सख्त जरूरत होती है. इस सूची में मधुमेह, रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर, किडनी, प्रोस्टेट से जुड़ी बीमारियां रखी जा सकती हैं, जो उम्र के साथ-साथ बढऩे लगती हैं. बहरहाल,बूढ़ों को स्वास्थ्य कवर देना बेहद गंभीर और जरूरी मुद्दा है, क्योंकि स्वास्थ्य बीमा कंपनियां वरिष्ठ नागरिकों को कवर देने से कन्नी काटती हैं या साफ इंकार कर देती हैं. अधिकतर निजी कंपनियों के बीमे की किस्त बेहद महंगी होती है, जिसे बिना पेंशन वाले बुजुर्ग वहन नहीं कर सकते. जो सरकारी सेवाओं में रहे हैं, उनके लिए सीजीएचएस जैसी सुविधाएं ताउम्र उपलब्ध हैं. हालांकि ऐसे बहुत कम फीसदी लोग हैं.आम आदमी के लिए बीमा कंपनियों की शर्तें इतनी महीन छापी जाती हैं कि उन्हें पढऩा असंभव होता है, लिहाजा बीमा लेने वालों को एजेंट के कथनों पर ही भरोसा करना पड़ता है. सरकारी डाटा ही खुलासा करता है कि मात्र 6 प्रतिशत आबादी उन वरिष्ठ नागरिकों की है, जिनके पास अपना स्वास्थ्य बीमा कवर है, जबकि भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडाई) बुजुर्गों की भागीदारी को प्रोत्साहित करता रहा है.इसके बावजूद देश और समाज के सबसे संवेदनशील समूह को बीमे के फायदों और जरूरत से बाहर रखा गया है, क्योंकि बीमे की किस्त वाकई बेहद महंगी है. दरअसल,इरडाई का ही डाटा है कि 144 करोड़ के देश में 55 करोड़ के पास ही स्वास्थ्य कवर है. औसतन 100 में से 54 कवर सरकार द्वारा प्रायोजित होते हैं. किश्त के तौर पर कमाए गए प्रति 100 रुपए में से 91 रुपए व्यक्तिगत और समूह बीमा पॉलिसी से आते हैं.एक सर्वेक्षण के मुताबिक, देश में 96 प्रतिशत लोग स्वास्थ्य बीमा जानते हैं, लेकिन 43 प्रतिशत ने ही पॉलिसी ले रखी है. औसतन 3 में से 2 लोग महसूस करते हैं कि बीमा किश्त बेहद महंगी है. नीतियां और शर्तें बेहद पेचीदा हैं, लूट भी लेती हैं, भुगतान की शर्तें बिल्कुल अस्पष्ट हैं और कई बीमारियों को कवरेज की सूची से बाहर रखा गया है और बीमा धारक को यह स्पष्ट नहीं किया जाता. यह धोखाधड़ी अधिकतर कंपनियां कर रही हैं. दरअसल स्वास्थ्य बीमा का बाजार बड़ा प्रतियोगी है. बीते 2023 के अंत में 29 कंपनियां ऐसी थीं, जो स्वास्थ्य की नीतियां और शर्तें तय कर रही थीं. गैर-जीवन बीमा बाजार का यह सबसे बड़ा हिस्सा है. बेशक यह बीमा-क्षेत्र बढ़ भी रहा है, क्योंकि लोग स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सचेत होने लगे हैं.
2023 में ही स्वास्थ्य बीमा की किस्त 21 प्रतिशत बढ़ाई गई, जो गैर-जीवन बीमा क्षेत्र की सकल वृद्धि से 7 प्रतिशत अधिक थी.बहरहाल, मुख्य विषय यह है कि मुफ्त स्वास्थ्य बीमा 70 वर्ष की बजाय 65 वर्ष की उम्र से मिलना चाहिए. इस मामले में कुछ गैर सरकारी संगठन लोकसभा में निर्वाचित होने वाले नए सदस्यों से मिलने की तैयारी कर रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि जो भी सत्ता में आते हैं तो वो आयुष्मान योजना पर विचार करेंगे और 65 वर्ष की उम्र के सभी नागरिकों को स्वास्थ्य कवर देंगे.