ड्राइविंग कौशल का परीक्षण नहीं, तो बीमा कंपनी की जवाबदारी नहीं 

 

-हाई कोर्ट ने प्रतिपादित किया महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत

 

जबलपुर। हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए कहा कि दुर्घटना दावा के मामले में यदि वाहन के मालिक ने वाहन के चालक के ड्राइविंग कौशल का परीक्षण नहीं किया है, तो बीमा कंपनी की जवाबदारी नहीं होगी। ऐसी स्थिति में दावा राशि वाहन मालिक को वहन करनी होगी। इस मत के साथ न्यायमूर्ति एके पालीवाल की एकलपीठ ने वाहन मालिक प्रदीप सिंह परिहार की याचिका निरस्त करते हुए मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) के फैसले को उचित करार दिया।

 

रीवा निवासी रुबीना के पति की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। इस मामले में एमएसीटी ने दावा राशि तो निर्धारित की, लेकिन कहा कि कंपनी यह राशि चुकता करके बाद में वाहन मालिक से वसूलेगी। एमएसीटी ने अपने आदेश में कहा था कि चूंकि वाहन चलाने वाले ड्रायवर के पास वैधा लाइसेंस नहीं था और वाहन मालिक ने भी चालक की ड्राइविंग कौशल का परीक्षण नहीं किया है। इसलिए दावा राशि के भुगतान की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की नहीं, वरन मालिक की होगी।

नेशनल इंश्योरेंस कंपनी की ओर से अधिवक्ता प्रभांशु शुक्ला ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि एमएसीटी ने सभी साक्ष्यों पर विचार करने और गवाहों की जांच करने के बाद ही निर्णय दिया है, इसलिए उक्त आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। वाहन के मालिक प्रदीप ने अपने बयान में यह सबूत नहीं पेश किया कि सुखनंदन (चालक) नियुक्त करने से पहले, उसने चालक का के कौशल को परीक्षण किया। हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मामले ऋषि पाल सिंह बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड में निर्धारित कानून के सिद्धांत किसी भी तरह से अपीलकर्ता वाहन मालिक की मदद नहीं करते हैं। चूंकि रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं आया कि उसने वाहन चलाने के कौशल को परीक्षण किया है ताकि यह पता चल सके कि वह वाहन को सक्षम रूप से चलाता है।

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