आर्थिक विषमता का मुद्दा

आय के असमान वितरण का मुद्दा इन दिनों उठाया जा रहा हैं. देश की 90 फ़ीसदी संपदा 10 फ़ीसदी लोगों हाथों में हैं. भारत भले ही दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया हो लेकिन गरीब देशों की श्रेणी में अभी भी उसका दुनिया के 100 देश के बाद स्थान है. इसका कारण आय का असमान वितरण है. यह भारत की दूसरी बड़ी समस्या है. भारत की पहली समस्या सामाजिक विषमता है. जाहिर है आर्थिक और सामाजिक विषमता के बारे में राहुल गांधी लगातार बोल रहे हैं, लेकिन उनका अंदाज गलत संदेश दे रहा है. दरअसल,आर्थिक विषमता के बारे में गंभीर विमर्श और उसका समाधान बेहद जरूरी है. भारत 1991 के बाद जिस आर्थिक नीति पर चल रहा है उससे बड़े व्यापारीऔर कारपोरेट जगत के लोग तो फायदा उठा रहे हैं लेकिन छोटे व्यापारी और लघु उद्योगों को नुकसान हो रहा है. इसी के साथ समाज में आर्थिक विषमता की खाई और चौड़ी हो रही है. वस्तुत: भारत तेजी से ऐसी स्थिति में पहुंच गया है,जहां कुछ प्रभावशाली कारोबारी अधिकांश क्षेत्रों पर दबदबा कायम कर रहे हैं और एक तरह का आर्थिक केंद्रीकरण हो रहा है.स्टील हो या सीमेंट, विमानन या वाहन, दूरसंचार या बैंकिंग, संगठित खुदरा कारोबार या मीडिया, बंदरगाह या हवाई अड्?डे,ये सभी बड़े कॉर्पोरेट के हाथों में हैं.

पोर्टफोलियो प्रबंधन कंपनी मार्सेलस के डेटा विश्लेषण के मुताबिक भारतीय कॉर्पोरेट जगत के 46 फीसदी मुनाफे में केवल 20 कंपनियां हिस्सेदार हैं.पिछले एक दशक से शीर्ष 20 कंपनियों की तरक्की लगातार बढ़ रही हैं. दरअसल आर्थिक विषमता का मूल इसी विश्लेषण में छिपा है.अगर केवल शीर्ष निजी कंपनियों को ही गिना जाए तो करीब 15 कंपनियां सबसे अधिक मुनाफे वाली रही हैं और परिभाषा के मुताबिक बीते दो दशक यानी 2002 से 2022 के बीच उनका दबदबा लगातार बढ़ा है.पिछले दशकों में शीर्ष स्तर पर ऐसी स्थिरता देखने को नहीं मिली थी.निश्चित तौर पर सन 1992 से 2002 के दशक में कारोबारी जगत में हलचल देखने को मिली क्योंकि आर्थिक सुधारों की वजह से देश में कारोबारों के परिचालन का माहौल बदला था.शीर्ष स्तर पर व्याप्त नई स्थिरता से यही सुझाव मिलता है कि अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा कम हुई या शायद इसमें परिवर्तन का दौर सीमित हुआ और हलचल के दशक में विजेता बनकर उभरी कंपनियां बाद के दौर में भी अव्वल बनी रहीं.इस निष्कर्ष को इस आंकड़े से भी बल मिलता है कि शीर्ष 20 कंपनियों में केवल सूचीबद्ध कंपनियां शामिल हैं. जबकि गैर सूचीबद्ध कंपनियां नुकसान में जा रही हैं. हालांकि बाजार की हकीकत यह है कि हाल के वर्षों में शेयर बाजार में सबसे बेहतर प्रतिफल लार्ज कैप शेयरों से नहीं बल्कि मिड कैप और स्मॉल कैप सूचीबद्ध कंपनियों से आया है. इनमें से अधिकांश का नाम भी जाना-पहचाना नहीं है.निश्चित तौर पर मार्सेलस के आंकड़े दिखाते हैं कि भारत के उद्योग जगत पर केवल 20 कंपनियों का एकाधिकार है. यह स्थिति भयावह है. राहुल इसी विषमता को उठाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस की विश्वसनीयता इतनी रसातल पर है कि राहुल की गंभीर बातों पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है.दरअसल,बैंकों में नकदी और कर्ज के कम स्तर को देखते हुए बड़े कारोबारी आने वाले दशक का इस्तेमाल बाजार में अपना दबदबा बढ़ाने में कर सकते हैं. केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा भारत के बैंकिंग सिस्टम की मजबूती के बारे में अनेक दावे किए जा रहे हैं लेकिन हकीकत यह भी है कि मजबूत बैंकिंग सिस्टम का फायदा चंद कॉरपोरेट घराने ही उठा पा रहे हैं. जाहिर है नई सरकार को आर्थिक विषमता को समाप्त करने की दिशा में बड़े कदम उठाने होंगे. जब तक लघु और मध्यम उद्योगों की स्थिति नहीं सुधरेगी, जब तक कुटीर उद्योगों को बढ़ावा नहीं मिलेगा. जब तक जिला स्तर पर औद्योगिकरण नहीं होगा, तब तक देश के आर्थिक विकास को सार्थक नहीं कहा जा सकता. इस संबंध में भाजपा की ये जिम्मेदारी है कि वो इस विषमता को दूर करने के लिए अपना कार्यक्रम जाहिर करें. क्योंकि सत्ता में आने की प्रबल संभावना इसी दल की है.

 

Next Post

वन विहार राष्ट्रीय उद्यान में भालू का अंगीकरण

Thu May 2 , 2024
Share on Facebook Tweet it Share on Reddit Pin it Share it Email भोपाल, 01 मई (वार्ता) भोपाल स्थित वन विहार राष्ट्रीय उद्यान वन्य-प्राणी अंगीकरण योजना एक जनवरी 2009 को प्रारंभ की गई थी। इस योजना अंतर्गत मास्टर विवान जोशी इंदौर ने पर्यावरण तथा वन्य-प्राणियों के संरक्षण के प्रति प्रेम […]

You May Like