मध्यभारतीय हिन्दी साहित्य सभा में “पाठक मंच” का आयोजन
ग्वालियर: मध्यभारतीय हिन्दी साहित्य सभा द्वारा “पाठक मंच” कार्यक्रम के अंतर्गत सभा की उपाध्यक्ष एवं महिला साहित्यकार डॉ. पद्मा शर्मा की पुस्तक ‘लोकतंत्र के पहरुए’ पर समीक्षा गोष्ठी का आयोजन किया गया।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डबरा से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार रामगोपाल तिवारी भावुक, विशिष्ट अतिथि के रूप में वाणिज्यिक कर विभाग से सेवानिवृत्त दतिया निवासी राजनारायण बोहरे, कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में डॉ.कुमार संजीव और सानिध्य प्रदान करने के लिये आलमपुर निजी महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापक राम भरोसे मिश्र उपस्थित रहे।
पुस्तक की समीक्षा महारानी लक्ष्मीबाई महाविद्यालय ग्वालियर के अंग्रेजी विभाग के प्राध्यापक डॉ.रविकांत द्विवेदी और वी आर जी महाविद्यालय की हिन्दी विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ.संगीता जैतवार ने प्रस्तुत की।डॉ द्विवेदी ने अपने समीक्षा वक्तव्य में कहा कि- “राजनीतिक मुद्दों पर महिलाएँ लेखन नहीं करतीं” इस भ्रांति को पद्मा शर्मा ने अपनी रचना के माध्यम से दूर किया है। उन्होंने औपन्यासिक तत्वों के आधार पर उपन्यास की विस्तृत समीक्षा प्रस्तुत करते हुये उपन्यास को भाषा प्रयुक्ति, चरित्रों की संगठनात्मक सरंचना की दृष्टि से एक श्रेष्ठ उपन्यास बताया। डॉ. संगीता जैतवार ने उपन्यास पर प्रकाश डालते हुये कहा कि -उपन्यास का पात्र सुदर्शन तिवारी हमारे समाज के दोगुले चेहरों का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। समीक्षा वक्तव्य में दैनिक भास्कर समाचार पत्र के पत्रकार रवीन्द्र झारखड़िया ने कहा कि गाँव और कस्बाई राजनीति के दाँव पेंच में फंसी आम आदमी की जिंदगी की व्यथा कथा है।
लोकतंत्र के पहरुए उपन्यास मौजूदा दौर की राजनीति और समाज की विद्रूपताओं को न केवल सामने लाने की कोशिश करती है बल्कि उनके चेहरों को बेनकाब भी करती हे। डॉ गिरिजा नरवरिया ने भी अपने विचार सबके समक्ष रखे। कार्यक्रम में सानिध्य प्रदान कर रहे रामभरोसे मिश्र ने लोकतंत्र के पहरुए पुस्तक पर अपना पाठकीय विचार प्रस्तुत करते हुये कहा, कि -संविधान में औरत को भले ही बराबरी का अधिकार दिया गया हो, फिर भी आज औरत की जिंदगी एक बहुत बड़ा सवाल बनकर खड़ी है। लोकतंत्र की नायिका सन्तो को देखकर हमारे मन में सवाल उठता है ,कि कब तक हमारे आसपास सन्तो जैसी स्त्रियाँ उपस्थित रहेंगी कब स्त्री को उसके हिस्से का सही अधिकार बिना संघर्ष मिलेगा।
उन्होंने उपन्यास को राजनीतिक दावपेंच, लोक संस्कारों के प्रकाशन की दृष्टि से अपने समय का सफल उपन्यास बताया। मुख्य अतिथि रामगोपाल तिवारी भावुक ने कहा कि – “राजनीतिक उपन्यासों की श्रेणी में लोकतंत्र के पहरुए का अपना अलग स्थान है। उपन्यास लेखक के देखे-सुने सच का परिणाम है इसलिये प्रासंगिक है। उपन्यास में समकालीन हर क्षेत्र की सच्चाई को पूरी ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया गया है। संवाद शैली आज के लेखकों के लिये उदाहरण प्रस्तुत करती है।” विशिष्ट अतिथि राजनारायण बोहरे ने उपन्यास की कथावस्तु को सारांश रूप में प्रस्तुत करने के साथ उपन्यास के केंद्रीय पात्र सुदर्शन तिवारी के जुगाड़ू स्वभाव को,जगना की स्वामिभक्ति को एवं उपन्यास में समाहित बच्चों के परम्परागत खेलों को विशेष रूप से उल्लेखित किया। उन्होंने कहा कि
लोकतंत्र के पहरुए में आदिवासी समाज एवं संस्कृति का चित्रण है
।राजनीति में होने वाले प्रत्येक स्तर के समझौते का और स्त्री की राजनीतिक पटल पर दुरावस्था का चित्र खींचा है। हिन्दी साहित्य जगत् उपन्यास का भरपूर स्वागत हुआ है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अखिल भारतीय साहित्य परिषद के प्रांत अध्यक्ष एवं सभा के अध्यक्ष डॉ कुमार संजीव जी ने लोकतंत्र के पहरूए पर अपने विचार रखते हुये कहा कि-उपन्यास की कथावस्तु की विविधता निःसन्देह आकर्षित करती है, किंतु निष्पत्ति की दृष्टि से उपन्यास के कुछ अंश भारतीय लोकतंत्र की छवि को विश्व पटल पर नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं ।
वक्तव्यों के क्रम में पुस्तक की लेखक डॉ पद्मा शर्मा ने पुस्तक सृजन के दौरान हुये अनुभवों को सबके साथ बाँटते हुये बताया कि:-कोरोना काल की भयानक परिस्थितियों में लोकतंत्र के पहरूए उपन्यास के लेखन ने मुझे जीवित रखने और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में अप्रतिम योगदान दिया। उन्होंने कहा कि:-उपन्यास के कथानक में सम्मलित क्षेपक कथाएँ हों या फिर मुख्य कथानक की घटनाएं मैंने सभी कुछ अपने आसपास होते हुये देखा है। आदिवासी जीवन को लंबे समय तक शोधात्मक दृष्टि से अवलोकन करने के बाद ही उस जीवन को इस उपन्यास में समाहित किया गया है। डॉ पद्मा ने उपन्यास के लिये पाठकों की भेजी गई आत्मीयता से भरपूर टिप्पणियों को भी सबके समक्ष प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का संचालन साहित्य मंत्री डॉ. मन्दाकिनी शर्मा एवं दीक्षा शाक्य ने तथा कार्यक्रम के अंत में सभी का आभार कार्यकारिणी सदस्य डॉ मंजूलता आर्य जी ने किया।इस अवसर पर सह मंत्री उपेंद्र कस्तूरे, पुस्तकालय मंत्री डॉ लोकेश तिवारी,डॉ राजरानी शर्मा जी, डॉ संध्या बोहरे, रवींद्र झारखरिया, डॉ विकास शुक्ल, डॉ उर्मिला त्रिवेदी, डॉ सुखदेव मखीजा, डॉ सीता अग्रवाल, डॉ.राजेन्द्र वैद्य, डॉ अशोक, डॉ करुणा सक्सेना, डॉ ज्योति उपाध्याय, सरिता चौहान, शुभी गुर्जर, अभिषेक राजपूत केशवानी ,प्रथम बघेल, राकेश पांडे, दीपक कोल सहित साहित्य अनुरागी एवं प्रबुद्ध गणमान्यजन उपस्थित रहे।