मनमोहन को कैर सांगरी की सब्जी थी बेहद पसंद

जयपुर 27 दिसंबर (वार्ता) पूर्व प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह उदारमना व्यक्ति थे और उन्हें राजस्थान की परम्परागत कैर सांगरी की बब्जी बेहद पसंद थी।

डा सिंह के नजदीक एवं मित्र की तरह रहे राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व व्याख्याता धर्मेंद्र भंडारी ने उनके साथ की यादे याद करते हुए यह बात बताई। उन्होंने बताया “वर्ष 1999-लोक सभा चुनाव में मैंने देखा कि डा मनमोहन सिंह किसी भी रैली को संबोधित करने ठीक समय पर, बल्कि पांच मिनट पहले ही पहुंच जाते, कुछ रैलियों के लिए मैं भी उनके साथ उनकी कार में बैठ कर गया।”

उन्होंने बताया कि 90 के दशक के अंतिम दिनों और वर्ष 2000 में जब कभी डॉ. सिंह जयपुर आते, हमारे घर जरूर आते थे। उन्हें मेरी मां के हाथ के बने कुछ व्यंजन पसंद आते थे। वर्ष 1991 में जब वे जयपुर आए तो उन्हें हमारे घर पर बनी कैर सांगरी की सब्जी बेहद पसंद आई। उन्होंने कहा “ डा सिंह स्वयं को समाजवादी से पूंजीवादी विचारधारा वाला बनाने में संकोच नहीं किया। मुझे तब यह समझ नहीं आया था, हालांकि उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में इसे समझाने की कोशिश की थी। करीब सात साल बाद मुझे यह समझ आया कि वे जो कर रहे थे वह जरूरी था और वही सही था। उनके कार्यकाल में मैंने बैंकिंग पर आधारित कुछ किताबें लिखी, उनमें से एक थी-‘टर्न अराउंड ऑफ बैंक्सःएन ऑप्टिकल इल्युजन’(मार्च 1996)। इसमें मनमोहन सिंह की नीतियों एवं उपलब्धियों पर भी चर्चा की गई है।”

उन्होंने बताया “डा सिंह के साथ उनकी पहली मुलाकात वर्ष 1982 के आसपास हुई, जब वह रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। उस समय मैं वहां रिसर्च स्कॉलर था और ‘टैक्सेशन ऑफ नॉन रेजीडेंट इन इंडिया’ विषय पर पीएचडी कर रहा था। तब मैंने उनसे मिलने का समय मांगा। समय मिलने पर मैंने उनसे आग्रह किया कि वे मेरे कुछ अध्यायों को चैक करें। उन्होने वे अध्याय पढ़े और उनके बारे में कुछ टिप्पणियां भी कीं। राजस्थान विश्वविद्यालय में लैक्चरर बनने के बाद मैं उनसे निरंतर मिलता रहा। वह इतने उदारमना थे कि व्यस्तता के बावजूद मुझे समय देते। चूंकि मैं सीए भी था तो अक्सर हमारे बीच आर्थिक नीतियों को लेकर भी चर्चा होती थी। इन चर्चाओं में मुझे उन्हें यह बताने का भी अवसर मिला कि कागजों पर बनी नीति को सीए कैसे क्रियान्वित करते हैं। इन चर्चाओं में वे गहरी रुचि भी लेते थे।”

श्री भंडारी ने बताया “मेरे लिए 1992 की वह घड़ी सर्वाधिक कठिन परीक्षा की घड़ी थी, जब मुझे संयुक्त संसदीय समिति द्वारा हर्षद मेहता घोटाले की जांच के लिए बुलाया गया। उस वक्त मैं वहां एकमात्र परामर्शदाता था, जिसे विश्वविद्यालय द्वारा प्रतिनियुक्ति पर वहां भेजा गया था। उस वक्त मुझे कहा गया कि मैं वित मंत्रालय पर एक अध्याय लिखूं और डॉ. मनमोहन सिंहजी ही उस समय वित्त मंत्री थे। उन्होंने तब कहा था ‘अगर किसी दिन स्टॉक मार्केट चढ़ जाता है और अगले दिन गिर जाता है तो इसका असर मेरी नींद पर नहीं पड़ता’। वर्ष 1994-95 में जब वह वित मंत्री थे, उन्होंने मुझे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में प्रतिनियुक्ति पर ओएसडी बना कर भेजा था।”

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