ईरान इजरायल युद्ध का नया खतरा !

दुनिया के समक्ष ईरान और इजरायल युद्ध का नया खतरा मंडराने लगा है. शनिवार आधी रात को ईरान ने इसराइल पर ड्रोन और मिसाइलों से हमला कर दिया. जाहिर है इजरायल भी चुप रहने वाला नहीं है. इसके पहले हमास के कारण गाजा पट्टी युद्ध का विध्वंस सहन कर चुकी है. जबकि रूस और यूक्रेन के बीच 2022 में प्रारंभ हुआ युद्ध अभी थमा नहीं है. ईरान के कारण इसराइल जवाबी हमला करेगा यह तय है. ऐसे में सीरिया जैसे देश इस युद्ध में कूद सकते हैं. इसराइल ही नहीं अमेरिका भी ईरान को पसंद नहीं करता. ऐसे में इस युद्ध में अमेरिका भी परोक्ष रूप से शामिल होगा. अमेरिका के बीच में पड़ते ही रूस और चीन भी चुप रहने वाले नहीं है. यानी ईरान का इसराइल पर हमला विकराल स्वरूप धारण कर सकता है. दरअसल,ईरान और इजरायल के बीच ये संघर्ष हाल ही का नहीं है, इसका एक अलग इतिहास रहा है.ईरान और इजरायल में दुश्मनी काफी पुरानी है. इजरायल के अस्तित्व को ईरान स्वीकार नहीं करता है. ईरान का कहना है कि इजरायल ने मुस्लिमों की जमीन को कब्जाया हुआ है.वहीं, इजरायल भी ईरान को अपने खतरे के रूप में देखता है.ईरान और इजरायल हमास युद्ध के दौरान भी कई बार आमने-सामने आए हैं.

ईरान और इजरायल के बीच जब भी विवाद गहराता है, उसका कारण सीरिया ही होता है.दरअसल, साल 2011 से सीरिया में जंग की स्थिति है और ईरान वहां की सरकार की मदद करता रहा है.सीरिया की बशर अल असद सरकार की ईरान मदद करता रहा है.इजरायल ने कई बार कहा कि सीरिया में ईरान अपने सैनिक अड्डे बना रहा है और वो उसे ऐसा करने नहीं देगा.इजरायल को इससे खतरा महसूस होता है, इसी कारण वो सीरिया पर कई बार आतंकी अड्डों को निशाना बनाते हुए हमला करता है.ईरान ने ताज़ा हमले के पहले कभी इजरायल के साथ जंग तो नहीं की, लेकिन वो ऐसे संगठनों का साथ देता रहता है जो इजरायल को निशाना बनाते रहे हैं. ईरान हमेशा से हिज्बुल्ला और फलस्तीनी आतंकी संगठनों का समर्थन करता रहा है. जहां तक सामरिक ताकत का प्रश्न है तो ईरान के पास लंबी दूरी तक मार करने वाली कई मिसाइलें है, वहीं इजरायल भी अपनी ताकतवर सेना के लिए जाना जाता है.इजरायल के पास परमाणु हथियार भी है और अमेरिका भी उसे हमेशा समर्थन देता आया है.दरअसल, इस युद्ध को अविलंब रोका जाना चाहिए. क्योंकि इसके फैलाव का खतरा है ? इसके अलावा ईरान और इसराइल दोनों ही बड़े तेल उत्पादक देश हैं. यदि इस युद्ध में खाड़ी के और देश शामिल होते हैं तो इसका असर तेल उत्पादन और कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा. ईरान इजरायल और फिलिस्तीन संघर्ष दरअसल,ऐतिहासिक रूप में मजहब और जमीन की लड़ाई है. मिडिल ईस्ट में स्थित देश इस्राइल के दक्षिणी हिस्से में गाजा पट्टी है जिसे नेशनल कमेटी चलाती है तथा इसे संयुक्त राष्ट्र में भी मान्यता है.यह वह स्थान है जहां पर इस्लाम और ईसाई धर्म के पवित्र स्थान हैं.यहूदियों के लिए टेंपल माउंट और मुसलमानों के लिए अल हरम अल शरीफ के पवित्र स्थल अल अक्सा मस्जिद डोम ऑफ द रॉक इसी शहर में हैं.पैगंबर मोहम्मद से जुड़े होने के कारण मुसलमान भी इसे पवित्र स्थान मानते हैं.

बहरहाल यह विवाद अब दुनिया के देशों को बांट रहा है. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि ना तो रूस और यूक्रेन तथा ना ही गाजा़ संघर्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ कोई भूमिका निभा सका है. दुनिया के तमाम देशों की सबसे बड़ी संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ नख,दंत विहीन हो गई है. दरअसल,संयुक्त राष्ट्र संघ एक नाकाम अंतरराष्ट्रीय संस्था बन कर रह गई है. यह संस्था इस तरह के विवाद को हल करने में पूरी तरह से विफल रही है. संयुक्त राष्ट्र संघ का मंच केवल कूटनीतिक और राजनीतिक बयान बाजी तक सीमित रह गया है.उसके होने या ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. बहरहाल, ईरान के ताजा हमलों व उसके प्रत्युत्तर में हो रहे युद्ध के दौरान सबसे ज्यादा मानवता का खून बहा है. इसलिए ईरान और इजरायल के बीच चल रहा संघर्ष तत्काल समाप्त होना चाहिए.

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