लापरवाही, रखरखाव के अभाव में कंडम हो गई सरकारी एबुलेंस

अनदेखी के कारण मरीज मिलने वाली सुविधा से हो रहे वंचित, मरीजों के परिजनों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है

नीमच। एक समय था जब जिला अस्पताल में डेढ़ दर्जन से अधिक एबुलेंस उपलब्ध रहती थी। एक फोन कॉल पर लोगों के घर तक कुछ ही मिनटों में एंबुलेंस पहुंच जाया करती थी। इन एबुलेंसों का संचालन रेडक्रॉस के माध्यम से होता था। रेडक्रॉस में राजनीतिक खींचतान के चलते गतिविधियां कमजोर पड़ी तो इसका सीधा असर एबुलेंस के मेंटेनेंस पर भी पड़ा। जहां कभी 15 से अधिक एबुलेंस सक्रियता से उपयोग में लाई जाती थीं, वहीं धीरे धीरे वे कबाड़ में तब्दील हो गईं। जिला अस्पताल की एबुलेंसों को भी यही हाल हुआ। आज दो एबुलेंस कंडम स्थिति में खड़ी हो अपने इतिहास की गवाही दे रही हैं।

रेडक्रॉस चढ़ी राजनीति की भेंट तो सुविधाएं छिनीं

एक समय था केवल एक फोन पर एबुलेंस सुविधा मरीज को उपलब्ध हो जाती थी। रेडक्रॉस की पूरी टीम मरीजों और उनके परिजनों के लिए हर संभव मदद को तत्पर रहती थी। रेडक्रॉस की ओर से मरीजों, मूखबधिर , दिव्यांग, बुजुर्ग आदि के लिए अनेक गतिविधियां संचालित की जाती थी। जैसे जैसे रेडक्रॉस में राजनीति हावी होती गई, जनता को मिलने वाली सुविधाओं में भी रुकावट आने लगी। सबसे बड़ा नुकसान एबुलेंस के रूप में हुआ। आपसी खींचतान के चलते रेडक्रॉस की गतिविधियां प्रभावित होती गई तो संसाधनों पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा। एबुलेंस के रख रखाव के लिए बजट मिलना बंद हो गया। जनसहयोग से एबुलेंस का संचालन किया जा रहा था। आपसी खींचतान के चलते जनता की रुचि भी कम होने लगी और एक समय ऐसा आया कि अधिकांश गतिविधियां बंद होने की स्थिति में आ गई। अंत में प्रशासन ने रेडक्रॉस का संचालन अपने हाथों में लिया। यहां भी सरकारी मशीनरी हावी हो गई। इसके बाद रेडक्रॉस कभी अपने पूर्व के अस्तित्व में नहीं आ सका। जनता को मिलने वाली सुविधाएं भी समाप्त होती चली गई।

108 और जननी एक्सप्रेस के भरोसे मरीज

रेडकॉस की एबुलेंसों का सड$क पर दौडऩा बंद हुआ तो जनता की परेशानी बढऩे लगी। इसका लाभ निजी एबुलेंस संचालकों को उठाया। ऊंचे दामों पर मरीजों को गंतव्य तक पहुंचाया जाने लगा। इसकी जानकारी जनप्रतिनिधियों तक पहुंची। मामला शासन स्तर पर गया। समस्या बड़ी होने से 108 और जननी एक्सप्रेस के रूप में एबुलेंस सड$क पर उतारी गई। अब मरीज इन्हीं के भरोसे हैं। सबसे बड़ी परेशानी ग्रामीण क्षेत्रों में आती है। ऑनलाइन व्यवस्था होने से ग्रामीणों तक समय पर सुविधा नहीं पहुंचती। इसका खामियाजा भी ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है। निजी एबुलेंस संचालक ऊंचे दाम वसूलते हैं। नीमच जिला अस्पताल से रेफर किए मरीज को जाना होता है दूसरे शहर के सरकारी अस्पताल, लेकिन निजी एबुलेंस संचालक प्रायवेट में भर्ती करवा देते हैं। इससे ग्रामीण मरीजों पर दोहरी मार पड़ती है।

रख रखाव के अभाव में हुई कंडम

जिले में अब भी 4 एबुलेंस हैं जो स्वास्थ्य विभाग के अधीन हैं, लेकिन अफसोसजनक स्थिति में हैं। स्वास्थ्य विभाग के पास चालक नहीं हैं जो इन एबुलेंसं का रख रखाव व मेंटेनेंस कर सके। इसके चलते 4 एबुलेंस जो अच्छी कंडिशन में हैं वो भी कंडम होने की स्थिति में पह़ंच जाएंगी। दो एबुलेंस रतनगढ़ और दो जिला अस्पताल परिसर में पड़ी हैं। स्थिति यह है कि इन एबुलेंस के आसपास झाडिय़ां तक उग आई हैं। इससे अंदाजा यही लगता है कि वर्षों से एक भी स्थान पर खड़ी हैं। इनकी नीलामी के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग के पास अधिकार रही हैं। इनकी नीलामी भी भोपाल मुयालय के आदेश पर ही हो सकती है। वहां भी सूचित किया जा चुका है, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई।

निजी एबुलेंस संचालकों को हो रहा लाभ

शासन की ओर से उपलब्ध होने वाली सरकारी अस्पताल की एबुलेंस सुविधा अव्यवस्था के कारण बंद होने से निजी एबुलेंस संचालकों को फायदा मिलता है। मरीजों को आपातकालीन स्थिति में आवश्यकता होने पर निजी एबुलेंस का सहारा लेना पड़ता है, मरीजों के परिजनों पर आर्थिक बोझ बढ़ता है। निजी एबुलेंस संचालक मनमाने रेट लगाते हैं।

मुख्यालय से लिया जाएगा निर्णय

एक समय था जब रेडक्रॉस की एबुलेंस थी। अब 108 और जननी एक्सप्रेस का मरीजों को लाभ मिल रहा है। जहां तक अस्पताल में कंडम पड़ी दो एबुलेंस का प्रश्न है तो इस संबंध में भोपाल मुख्यालय को सूचित कर दिया है। अंतिम निर्णय वहीं से लिया जाएगा।

– महेंद्र पाटिल, सिविल सर्जन

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