देश ने मंगलवार को 75 वां संविधान दिवस मनाया. 26 नवंबर 1949 को संविधान पूरी तरह से तैयार हो गया था, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया. भारत ने संवैधानिक और लोकतांत्रिक परंपराओं को अत्यंत गरिमा पूर्ण तरीके से निभाया है. आपातकाल की छोटी सी अवधि छोड़ दी जाए तो हमारे यहां संविधान खत्म होने का संकट या आशंका कभी नहीं रही. आपातकाल लगाने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी शांतिपूर्ण तरीके से 1977 में कांग्रेस की सत्ता जनता सरकार को सौंप दी थी. यानी हमारे यहां हमेशा सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण तरीके से हुआ है. जाहिर है हमारे यहां लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं. हमारा संविधान और लोकतंत्र न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका ऐसे तीन स्तंभों पर टिका हुआ है. यह तीनों स्तंभ पूरी क्षमता के साथ लगातार कार्य कर रहे हैं. ऐसे में जब बार-बार चुनाव आयोग पर बिना प्रमाण दिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में छेड़छाड़ के आरोप लगाते हैं तो दुख होता है. संविधान दिवस के अवसर पर विपक्षी दलों द्वारा कहा गया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम के खिलाफ सडक़ों पर देशव्यापी संघर्ष किया जाएगा. इसके एक दिन पहले शिवसेना उद्धव बालासाहेब ठाकरे के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद संजय राऊत ने हाल ही में रिटायर्ड हुए चीफ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ पर आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी की पराजय में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ का हाथ है. जाहिर है राजनीतिक दल अपने निहित स्वार्थों के चलते लगातार संवैधानिक संस्थाओं पर आरोप लगा रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर कही जा रही बातें सुप्रीम कोर्ट अनेक बार खारिज कर चुका है. मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने एक ऐसी ही याचिका को खारिज किया और बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग खारिज कर दी. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को लेकर 40 बार देश के विभिन्न हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट फैसला दे चुके हैं इसके बावजूद जब भी चुनाव में पराजय होती है पराजित दल या गठबंधन इसका दोष ईवीएम को देता है. झारखंड और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के बाद तो पराजित दलों ने बेहद अजीबोगरीब आरोप लगाए. उनका तर्क था कि सत्तारूढ़ पार्टी ने झारखंड में जानबूझकर विपक्ष को चुनाव जितवा दिया ताकि महाराष्ट्र की गड़बड़ी को बैलेंस किया जा सके. इन दलों ने कहा कि ऐसा ही कश्मीर और हरियाणा के चुनाव में भी किया गया कि जम्मू कश्मीर हमें दिया गया और हरियाणा हमसे छीन लिया गया. इस आरोप का खोखलापन इसी से जाहिर है कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ऐसा कर सकती तो फिर लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री ने भाजपा को 300 सीटें क्यों नहीं दिलवा दी ?.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने लोकसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी को बहुमत से दूर क्यों रखा ? यही नहीं भाजपा ने दावा किया था कि काशी से प्रधानमंत्री 10 लाख से अधिक मतों से जीते थे जबकि उनकी जीत का अंतर 1,40,,000 के आसपास था. यदि मोदी और शाह की जोड़ी गड़बड़ी करने की क्षमता रखती तो प्रधानमंत्री की जीत का अंतर क्यों कम हुआ ? निर्वाचन आयोग ने कम से कम 10 बार विपक्षी नेताओं और आईटी विशेषज्ञों को आमंत्रित किया कि बताएं किस तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में छेडख़ानी हो सकती है ? यदि इस मशीन को हैक किया जा सकता है तो करके बताएं! आज तक कोई भी राजनीतिक दल या आईटी विशेषज्ञ चुनाव आयोग की इस चुनौती को स्वीकार नहीं कर पाया है. भारत के आम चुनाव में 9 लाख से अधिक इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का उपयोग होता है. हर एक मशीन एक अलग यूनिट है. कोई भी मशीन इंटरनेट से जुड़ी हुई नहीं है.जाहिर है इतने बड़े पैमाने पर मैनिपुलेशन करना असंभव है. कुल मिलाकर विपक्ष चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट पर अंगुली उठाकर लोकतंत्र का ही नुकसान कर रहा है. यह बिल्कुल भी देश के हित में नहीं है. यह सब बंद होना चाहिए !