-टेराकोटा विधि से बनी मूर्तियां हजारों वर्षोंतक सुरक्षित रखी जा सकती हैंः हस्तशिल्प विशेषज्ञ मुश्ताक खान
-गीली मिट्टी को पकाकर जो उपादान निर्मित किए जाते हैं उन्हें टेराकोटा शिल्प कहा जाता हैः श्रीमती रुचि सिंह
ग्वालियर। आईटीएम ग्लोबल स्कूल ग्वालियर में ‘टेराकोटा शिल्प विधि‘ पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में हस्त शिल्प विशेषज्ञ मुश्ताक खान और प्रख्यात कला शिक्षक मुश्ताक खान चौधरी शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्रीमती रुचि सिंह अध्यक्ष, आईटीएम ग्लोबल स्कूल एवं कुलाधिपति आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर ने की। इस अवसर पर आईटीएम ग्लोबल स्कूल के प्रिंसिपल सहित समस्त शिक्षक और छात्र-छात्राएं विशेष रूप से मौजूद रहे।
मुख्य अतिथि प्रख्यात कला शिक्षक मुश्ताक खान ने छात्र-छात्राओं को बताया कि टेराकोटा तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी की जरूरत पड़ती है जिसमें सबसे पहले काली मिट्टी, लाल मिट्टी, महीन रेत, धान का भूसा, लकड़ी का बुरादा एकत्र किया जाताहै।इसके बाद इन सभी मिट्टियों और वस्तुओं को अच्छे से छानकर मिलाया जाता है।इन सभी सामाग्रियों को इस तरह मिलाते हैं कि सभी समरूप नजर आने लगें।इसके बाद इस मिश्रण को तीन से सात दिन तक पानी में गलाया जाता है।क्योंकि मिट्टी का मिश्रण जितना अधिक गलेगा टेराकोटा की क्वालिटी उतनी ही अच्छी होगा।उन्होंने बताया कि मिट्टियों के इस मिश्रण को अच्छे से घंटों और कभी-कभी दो से तीन दिनों तक गूंथा जाता है।इसके बाद इस मिट्टी के ढेर को सूखने के लिए रखते हैं।उन्होंने कहाकि अब टेराकोटा के लिए यह मिट्टी तैयार हुई है या नहीं इसका परीक्षण सुखाए गए मिश्रण को लेकर जमीन पर पटकते हैं, अगर यह मिश्रण छार-छार हो जाए तो समझ लें कि अब यह टेराकोटा के लिए तैयार है।उन्होंने छात्र-छात्राओं कोबताया कि टेराकोटा मिश्रण से सबसे पहले पेडिस्टिल फिर पैर और धड़, चेहरा और अंत में हाथ की उंगलियां अंगूठे बनाये जातेहैं।इसके अलावा उन्होंने टेराकोटा के ऐतिहासिक महत्व, बनाने की पद्धति, क्या क्या प्राकृतिक सामान मिलाया जाता है।बनाने के बाद मूतिर्यों और वस्तुओं को कैसे पकाया जाता है।इसके संस्कारित पक्ष क्या हैं सहित आदि टेक्नीकल पहलुओं के बारे में छात्र-छात्राओं को विस्तार से जानकारी देते हुए जागरूक किया।
टेराकोटा विधि से बनी मूर्तियां हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखी जा सकतीहैंः हस्त शिल्प विशेषज्ञ मुश्ताक खान
आईटीएम ग्लोबल स्कूल ग्वालियर में ‘टेराकोटा शिल्प विधि‘ पर विशेष व्याख्यान में मुख्य अतिथि हस्त शिल्प विशेषज्ञ मुश्ताक खान ने छात्र-छात्रा को बताया कि टेराकोटा कला हजारों वर्ष पुरानी है।सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान इसका प्रचलन काफी थी।उन्होंने कहा कि हमने आईटीएम ग्लोबल स्कूल ग्वालियर में तमिलनाडु के प्रसिद्ध मंदिर अयन्नार देवलोक का निर्माण टेराकोटा विधि से किया है। यह मंदिर भगवान शिव और भगवान विष्णु पर समर्पित है। उन्होंने कहा कि अयन्नार देव हमारे रक्षक हैं।हम सभी उनकी पूजा करते हैं और वह हमारी हर मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।उन्होंने कहा कि अयन्नार देव हमेशा मानव जाति की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं और हमारी प्रकृति, फसल और जीवन की रक्षा करते हैं।उन्होंने छात्र-छात्राओं को बताया कि तमिलनाडु में हर साल त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान जिन व्यक्तियों की मनोकामना पूरी हो जाती है वह टेराकोटा से बनी देव की मूर्तियों को मंदिर में चढ़ाते हैं।उन्होंने बच्चों को बताया कि मिट्टी से बनी मूर्तियां टूट सकती है।लेकिन टेराकोटा विधि से बनी मूर्तियां हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखी जा सकती हैं।उन्होंने बच्चों से कहा कि आपके स्कूल में अयन्नार देव लोक इसलिये तैयार किया है जिससे आप इनके महान व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर अपने जीवन पथ पर समाजऔर देश की भलाई के रास्ते पर चलें।इसी के साथ उन्होंने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना की है।
गीली मिट्टी को पकाकरजो उपादान निर्मित किए जाते हैं उन्हें टेराकोटा शिल्प कहा जाता हैः श्रीमती रुचि सिंह
आईटीएम ग्लोबल स्कूल ग्वालियर में ‘टेराकोटा शिल्प विधि‘ पर विशेष व्याख्यान में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं श्रीमती रुचि सिंह (अध्यक्ष, आईटीएम ग्लोबल स्कूल एवं कुलाधिपति आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर) ने छात्र-छात्राओं से कहा कि गीली मिट्टी को पकाकर जो उपादान निर्मित किए जाते हैं, उन्हें टेराकोटा शिल्प कहा जाता है।आपने देखा किपूरे 40 दिनों तक चले इस कैंप के दौरान तमिलनाडु से आए प्रख्यात मृदा शिल्प विशेषज्ञों ने किस तरह टेराकोटा के लिए मिट्टी गूंथने से लेकर आयन्नार देवलोक के निर्माण तक अपनी पूरीमेहनत और लगन से किया।आज उनकी इस मेहनत और लगन से निर्माण इस आयन्नार देवलोक की हम सभी सराहना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आप भी अपनी मेहनत और लगन के साथ अध्ययन करेंऔर जीवन में सफलता की ओर अपने कदम बढ़ाएं।