प्रदेश के उपचुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला बराबरी पर रहा
लेकिन कांग्रेस ने प्रभावी उपस्थिति से साबित किया कि विपक्ष कमजोर नहीं
प्रदेश कांग्रेस में बढ़ेगी जीतू पटवारी की स्वीकार्यता
कन्हैया लोधी
भोपाल : प्रदेश के बहुप्रतीक्षित विधानसभा उपचुनाव के परिणाम आ गए. ये परिणाम भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही बेहद मायने रखते हैं. भाजपा सत्ताधारी दल है. पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में एकतरफा जीत से उसके हौंसले बुलंद थे, लेकिन उपचुनाव के परिणाम ने उन्हें भले ही राहत दे दी हो, लेकिन आत्मचिंतन करने का मौका भी दिया है. ये इसलिए भी कि विजयपुर में तमाम कोशिशों के बाद भी भाजपा आदिवासी वर्ग का विश्वास हासिल नहीं कर पाई, इधर यदि बुधनी में शिवराजसिंह चौहान मोर्चा नहीं संभालते तो भाजपा के लिए राह और मुश्किल हो सकती थी. बुधनी की जीत जहां शिवराज की व्यक्तिगत जीत मानी जाएगी, तो दूसरी तरफ विजयपुर की जीत ने प्रदेश कांग्रेस को नया ऑक्सीजन दे दिया है, वहीं प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की स्वीकार्यता में अब इजाफा होना भी तय हो गया है.
सबसे पहले यदि विजयपुर के बारे में समझें तो यहां साफ है कि इस विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी वर्ग निर्णायक क्षमता रखता है. इस बार यहां कांग्रेस ने मुकेश मल्होत्रा पर दांव लगाया, ये वही मल्होत्रा है जो कि पिछले विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लडक़र भी लगभग 44 हजार वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर थे. मल्होत्रा सहरिया समुदाय से आते हैं, इधर भाजपा उम्मीदवार रावत ओबीसी वर्ग से आते हैं, जिनके वोट महज 18 हजार के आसपास ही थे, साफ था कि यहां ओबीसी और आदिवासी विनिंग कॉम्बीनेशन बनाते हैं जो कि रावत की जीत की बड़ी वजह बनते थे, लेकिन इस बार कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग के उम्मीदवार को ही उतारकर वोट को भाजपा के पाले में जाने से बचा लिया.
सिंधिया की दूरी भी बनी वजह
रावत को लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा मे लाने वाले शिल्पकार विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर थे, इसका स्थानीय स्तर पर भाजपा के कद्दावर नेताओं ने विरोध किया था, उनका तर्क था कि वे सशर्त आए हैं यानी मंत्री बनने की शर्त पर. लिहाजा चुनाव में स्थानीय नेताओं का पूरा साथ नहीं मिला. भाजपा के रणनीतिकार ये जानते थे, इसलिए यहां विधानसभा उपचुनाव से पहले 400 करोड़ रुपए के विकार कार्य कराए गए या फिर घोषणा की गई, लेकिन मतदाताओं पर कोई असर नहीं हुआ. इधर उपचुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पूरे समय दूरी बनाए रखी. दरअसल रावत को जब भाजपा में शामिल कराया गया तो सिंधिया को भरोसे में नहीं लिया गया. ऐसे में यहां उपचुनाव के दौरान प्रचार का पूरा दारोमदार विधानसभा अध्यक्ष तोमर के कंधे पर आ गया. सामान्य तौर पर विस अध्यक्ष उपचुनाव में प्रचार से दूर रहते हैं लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ, कांग्रेस ने इस पर भी सवाल उठाया, लेकिन यहां मामला नैतिकता नहीं नियम का था, ऐसा कोई नियम नहीं है कि विधानसभा अध्यक्ष प्रचार नहीं करते, बस सामान्य परंपरा बनी हुई थी कि अध्यक्ष प्रचार नहीं करते, लेकिन परंपरा भी टूट गई और हाथ खाली के खाली ही रहे.
हालांकि यहां मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने प्रचार में पूरा जोर लगाया, लेकिन वे भी अपनों के साथ ही आदिवासी वर्ग को साधने में कामयाब नहीं हो सके. इधर कांग्रेस के लिए ये करो या मरो का मामला था, वे जानते थे कि ये उपचुनाव उनके लिए सुनहरा मौका है. लिहाजा उन्होंने मौके को भुनाने के लिए पहले से ही रणनीति तैयार की और लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार रहे नीटू सिकरवार ने यहां पूरे समय मोर्चा संभाले रखा और रावत को सबक सिखाने की ठान ली थी, सिकरवार का मानना था कि लोकसभा चुनाव में उनकी हार के लिए रावत ही जिम्मेदार हैं, यदि वे भाजपा में नहीं जाते तो वे मुरैना से जीत जाते. विजयपुर की जीत के लिए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी को ही मुख्य शिल्पकार माना जाएगा, जिसका फायदा उन्हें आने वाले दिनों में मिलेगा, ये साफ है. अब उनकी वजनदारी में और इजाफा होना तय है.
बुधनी कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना था
बुधनी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं था. यहां से भाजपा ने रमाकांत भार्गव पर दांव लगाया तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने राजकुमार पटेल को मैदान में उतारा. यहां भाजपा पहले ही एडवांटेज में थी. ये इसलिए कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में शिवराजसिंह चौहान यहां से 104947 वोटों के बड़े अंतर से जीते थे, लेकिन इस उपचुनाव परिणाम ने यहां भाजपा को नजदीकी मुकाबले में ला दिया. एक साल के भीतर ही भाजपा ने यहां लगभग 91 हजार वोट खो दिए हैं, जो कि अब चिंता का सबब है. झारखंड में भाजपा चुनाव प्रभारी होने के बाद भी केंद्रीय मंत्री शिवराजसिंह चौहान यहां लगातार सक्रिय बने रहे. वे इसके पीछे की वजह भी जानते थे. कांग्रेस ने किरार समाज के उम्मीदवार को मैदान में उतारा, जिनके वोटर लगभग 30 हजार हैं, ऐसे में किरार समाज के वोट यहां बंट गए. इधर गोंड और भील का भी इस बार साथ कांग्रेस को मिला, जिनके वोटर भी बड़ी संख्या में हैं.
उपचुनाव के दौरान ही किसानों का आक्रोश भी सामने आया, ऐसे में किसानों को साधना भी किसी चुनौती से कम नहीं था. इस आक्रोश को कांग्रेस ने भुनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, जिस कारण उनके वोट में जबर्दस्त इजाफा हुआ, फिर भी वे पिछले चुनाव के वोटों का गेप इतना बड़ा था कि उसकी पूरी तरह भरपाई नहीं की जा सकी. एक कारण ये भी रहा कि यहां रमाकांत भार्गव के नाम पर भाजपा के सभी स्थानीय नेताओं को भाजपा एकजुट नहीं कर सकी. हालंाकि यहां भी चौहान के अलावा मुख्यमंत्री डॉ. यादव और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने पूरा जोर लगाया, जो कि जीत की बड़ी वजह बनी. यहां डॉ. यादव और चौहान ने साथ मिलकर रोड शो किया था. इधर अब चुनाव परिणाम का कांग्रेस पर भी व्यापक असर होगा, ये तय है. संभवत: अब किसी बैठक में प्रदेश अध्यक्ष जीते पटवारी को रूआंसा नहीं होना पड़ेगा, कांग्रेस के दिग्गज चाहकर भी नजरअंदाज नहीं कर सकेंगे, दिल्ली दरबार में उनकी पूछ परख और बढ़ेगी