1962 के बाद से किसी भी दल ने महिला को नहीं बनाया लोकसभा प्रत्याशी

दमोह में 34 वर्षों से है भाजपा का एकाधिकार

अविनाश दीक्षित
दमोह: महिला सशक्तिकरण के दावों के बीच महिला नेतृत्व को अवसर न मिलने का विडंबना पूर्ण तथ्य दमोह लोकसभा में अब तक का स्थापित तथ्य है। 1962 के लोकसभा चुनाव के बाद से किसी महिला नेत्री को किसी भी राजनीतिक दल ने ना मौका दिया औऱ ना ही महिला नेतृत्व को उभरने दिया। इस लोकसभा चुनाव में भी पुरुष प्रत्याशियों का बोलबाला है।1962 से 1971 तक कांग्रेस की सहोदा राय सांसद निर्वाचित हुई थीं।महाकौशल से सटे और बुंदेलखंड की अहम माने जाने वाली दमोह लोकसभा सीट में भाजपा का 34 वर्ष से एकाधिकार बना हुआ है। इस सीट का दो बार परिसीमन हो चुका है। पहले दमोह, पन्ना, तथा छतरपुर की 8 विधानसभा सीटें शामिल थीं, लेकिन 2009 में हुए परिसीमन में दमोह, छतरपुर और सागर जिले की सीटों को शामिल कर नया संसदीय क्षेत्र बनाया गया, यही स्थिति अभी है।

भाजपा और कांग्रेस ने दमोह लोकसभा क्षेत्र में 2.75 लाख लोधी वोटरों को देखते हुए जातिगत आधार पर प्रत्याशी तय किये हैं। भाजपा की ओर से लोकसभा प्रत्याशी राहुल लोधी हैं। वे 2018 के विधानसभा चुनाव में दमोह क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे लेकिन 2020 में जब मध्य प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार गिर गई उसके कुछ महीनो बाद राहुल लोधी ने भाजपा का दामन थाम लिया था। भाजपा ने उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने के बाद उपचुनाव में भी अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन राहुल लोधी कांग्रेस के अजय टंडन से तकरीबन 17000 मतों से उपचुनाव में हार गए।

पराजय उपरांत उन्होंने प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया पर गंभीर आरोप लगाए। कुछ और आरोप – प्रत्यारोपों से दमोह भाजपा की आंतरिक राजनीति में महीनों तक ज्वार भाटा आता रहा। फिलहाल सतही तौर पर आपसी बयान बाजी शांत नजर आ रही है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि एक बंगले को लेकर कुछ दिनों पूर्व दमोह के पूर्व सांसद प्रहलाद पटेल तथा राहुल लोधी के बीच कुछ असामान्य माहौल निर्मित हो गया था, जो ज्यादा प्रचारित तो नहीं हुआ, परंतु माना जा रहा है कि इसका असर देर सबेर सामने आ सकता है। बात कांग्रेस प्रत्याशी तरवर पटेल की करें तो वह 2018 के विधानसभा चुनाव में बंडा से विधायक बने थे। उन्होंने बीजेपी के हरवंश राठौर को 25 हजार वोट से हराया था। हालांकि, वर्ष 2023 में कांग्रेस प्रत्याशी तरवर सिंह को भाजपा के वीरेंद्र लोधी ने 35 हजार वोटों के अंतर से हराया। पार्टी ने इसके बाद भी उन पर ही भरोसा जताया है।

क्यों मिला तरवर को टिकट
तरवर सिंह कमलनाथ के करीबी बताए जाते हैं। वर्ष 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में कमलनाथ ने ही उन्हें टिकट दिलाया था। भाजपा ने लोधी समाज से राहुल सिंह लोधी को प्रत्याशी बनाया, तब से तय था कि कांग्रेस भी किसी लोधी प्रत्याशी को मैदान में उतारेगी। हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव में भी यही समीकरण बना था। प्रहलाद पटेल के खिलाफ कांग्रेस ने प्रताप लोधी को मैदान में उतारा था। इस बार कांग्रेस का लोधी प्रत्याशी लोकसभा के लिए नया चेहरा है। इससे पहले तरवर ने एक भी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा है। यही कारण है कि बुंदेलखंड में जातीय गणित के आधार पर लोधी वोट बैंक को महत्व दिया गया है।

8 में से 3 विधायक लोधी
दमोह लोकसभा की आठ विधानसभा सीटों पर नजर डाली जाए तो वर्तमान में 3 विधानसभा क्षेत्र में लोधी जाति के विधायक हैं। जिनमें जबेरा से धर्मेंद्र सिंह लोधी (भाजपा), बड़ा मलहरा से राम सिया भारती (कांग्रेस) और बंडा से वीरेंद्र सिंह लोधी (भाजपा) शामिल हैं। दमोह विधानसभा से जयंत मलैया (भाजपा), रहली से गोपाल भार्गव (भाजपा) और देवरी से बृजबिहारी पटैरिया (भाजपा) विधायक हैं। पथरिया से लखन पटेल (भाजपा) और हटा से उमा देवी खटीक (भाजपा) विधायक हैं। आठ में से सात विधानसभा सीटों पर भाजपा और एक पर कांग्रेस का कब्जा है।

तरवर का राजनीतिक सफर
तरवर सिंह लोधी का राजनीतिक सफर सरपंच पद से शुरू हुआ था। वह 2015 में जिला पंचायत सदस्य बने। उन्हें 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से टिकट मिला और पहली बार में ही विधायक बन गए। 43 वर्षीय तरबर सिंह 12वीं पास हैं। उनके परिवार में उनकी पत्नी के अलावा दो पुत्र हैं। उनके पिता निरंजन सिंह एक कृषक हैं।

टिकट के ये भी थे दावेदार
दमोह लोकसभा सीट से कांग्रेस के मानक पटेल, गौरव पटेल, डॉ. जया लोधी टिकट के दावेदारों में थे। इन सबके बीच तरवर सिंह लोधी को मौका मिला। कहा जाता है कि तरवर सिंह को यदि छोड़ दें तो अन्य कोई दावेदार चुनाव लडऩा नहीं चाहता था।

दोनों प्रत्याशियों में समानता
भाजपा के राहुल सिंह लोधी और कांग्रेस के तरवर सिंह लोधी में एक बात समान है। दोनों जिला पंचायत सदस्य रहे, फिर एक बार विधायक रहे हैं। अंतर महज इतना है कि राहुल सिंह ने जयंत मलैया को हराने के 18 महीने के अंदर ही कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम लिया था। वहीँ तरवर सिंह ने कांग्रेस नहीं छोड़ी जबकि आए दिन इस प्रकार की अटकलें लगती रही हैं कि राहुल के बाद अब तरवर भी बीजेपी में जाएंगे, किंतु तरवर सिंह लोधी पूरे पांच साल विधायक रहे।

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