कला की किसी भी विधा से जुड़े कलाकारों का कुछ नही कर सकता काल: डॉ.अनुप

० राष्ट्रीय बाणभट्ट महोत्सव के दूसरे दिवस कलाकारों ने दी मनमोहक प्रस्तुति, उत्तरप्रदेश,बिहार, झारखण्ड के लोक कलाकारों के लोकगीत सुनकर हर्षित नजर आये श्रोता

नवभारत न्यूज

सीधी 10 नवम्बर। राष्ट्रीय बाणभट्ट महोत्सव परसिली के दूसरे दिन उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड के कलाकारों ने अपने प्रदेश के लोकगीतों की मनमोहक प्रस्तुति दी। वरिष्ठ समाजसेवी एवं मुख्य अतिथि डॉ.अनुप मिश्रा ने अपने उद्बोधन में कहा कि कला की किसी भी विधा से जुड़े कलाकारों का काल भी कुछ नहीं कर सकता।

महोत्सव के दूसरे दिन कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ.अनुप मिश्रा, सुमन कोल, कृष्णलाल पयासी, सीमा पाण्डेय, ममता शुक्ला द्वारा दीप प्रज्वलन कर किया गया। अपने उद्बोधन में डॉ.अनुप मिश्रा ने कलाकार का शाब्दिक अर्थ बताते हुये कहा कि कला के पीछे साधना करने वाले को काल भी कुछ देकर ही जायेगा। बघेलखण्ड की लोक कलाओं में चमरौंही, अहिराई, कोलदादरा आदि का विशेष महत्व है। विंध्य क्षेत्र की माटी में लोकगीत और लोक कलाएं रची बसी हैं। डॉ.अनुप मिश्रा ने इस लोक संगीत के ऐतिहासिक आयोजन के लिए उत्थान सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक समिति सीधी संरक्षक अखिलेश पाण्डेय एवं उनकी टीम की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए मध्यप्रदेश टूरिज्म बोर्ड भोपाल एवं जिला पुरातत्व पर्यटन-संस्कृति परिषद सीधी के साथ परसिली रिसार्ट के प्रबंधक राजेन्द्र द्विवेदी के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस संस्था को इस तरह का आयोजन जिले के विभिन्न क्षेत्रों में सीधी की होनहार बेटी राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय के नेतृत्व में बाल लोक कलाकारों का होना चाहिए। उन्होंने लोक गीतों पर प्रकाश डालते हुए आगे कहा कि लोकगीतों से लोगों को अपनी संस्कृति और समाज के बारे में जानकारी मिलती है। लोकगीतों में जीवन के हर पहलू का चित्रण होता है। लोकगीतों में लोक मानस की सहज अभिव्यक्ति होती है। लोकगीतों में मानवीय मूल्य और सम्मान का भाव छिपा रहता है। लोकगीतों में जीवन के हर्ष-विषाद, आशा-निराशा, सुख-दुख सभी की अभिव्यक्ति होती है। लोकगीतों से मनुष्य की व्यवहारिक आवश्यकताओं की भी पूर्ति होती है। लोकगीतों के साथ लोकनृत्य का भी विशेष स्थान है। लोकगीतों की लंबी सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा है। लोकगीतों का विकास अधिक से अधिक होना जरूरी है ताकि हमारी संस्कृति का जतन हो सके। डॉ.मिश्रा ने लोकगीतों की कुछ प्रमुख विशेषताओं के बारे में बताते हुए कहा कि लोकगीत गांवों-कस्बों आदि के संगीत हैं।ये त्योहारों और विशेष अवसरों पर गाये जाते हैं।

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धना काहे का रात रिषिआनी गढ़ाई देव…

मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड भोपाल, जिला पुरातत्व पर्यटन एवं संस्कृति परिषद, म.प्र. पर्यटन विकास निगम के सहयोग से उत्थान सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक समिति के द्वारा आयोजित राष्ट्रीय बाणभट्ट महोत्सव परसिली के दूसरे दिन महोत्सव में राष्ट्रीय लोक गायिका मान्या पाण्डेय ने बघेली लोकगीत धना काहे का रात रिषिआनी गढ़ाई देव दुई झूलनी, मइया सुरतिया हो मियां सुरतिया, भोर पहरा मा नहीं आये सहित बघेली संस्कार गीत, आदिवासी गीतो की प्रस्तुति दी। बरेली उप्र से आई लोक गायिका वैष्णवी राय ने काहे लाये नथुनिया उधार बलमा, पटना बिहार की लोक गायिका संजना राय ने मोर्या पहिर रामजी, घूमेलन भवनबा। झारखंड के लोक गायक सुभाष राय ने सुनिला अराजिया गंगाएकरा ना विचार हो। जिले की लोक गायिका दिव्या द्विवेदी ने नजर लागी राजा, तोहरे बगले में तो वहीं मानसी तिवारी ने कुसुम रंग सारी रे, अर्पणा मिश्रा ने विवाह गीत गारी की मनमोहक प्रस्तुति दी।

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सम्मानित हुये लोक वादक

राष्ट्रीय बाणभट्ट महोत्सव परसिली के मंच में लोक वादकों को मुख्य अतिथि डॉ.अनुप मिश्रा ने सम्मानित किया। सम्मानित होने वाले लोक वादकों में कपिल तिवारी, पवन शुक्ला, कर्णवीर सिंह, प्रकाश मिश्रा, कृष्णजन्म द्विवेदी शामिल हैं। इस दौरान लोक वादकों की प्रस्तुति की भी सराहना की गई। महोत्सव के दौरान लोक गायकों द्वारा जो मनभावन प्रस्तुति दी जा रही है उसको संगीत एवं वादन से संजोने एवं पिरोने में लोक वादकों की अहम भूमिका होती है। मंच पर कलाकारों के साथ पूरी तरह से सहभागिता करने वाले लोक वादकों के माध्यम से ही श्रोताओं तक सुरीली आवाज पहुंचती है।

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