तकनीकी खामियों के कारण आ रही परेशानी
उज्जैन: प्रदेश सरकार ने रजिस्ट्री कार्य को आसान करने व डिजिटल तकनीक को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संपदा-2.0 के नाम से एक सॉफ्टवेयर का डेवलपमेंट किया और घर बैठे ऑनलाइन रजिस्ट्री किए जाने के जो दावे किए थे उनमें तकनीकी खामी के चलते अब सिस्टम पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं.दरअसल मध्य प्रदेश सरकार ने भू माफिया द्वारा की जाने वाली ठगी और रजिस्ट्री के अंतर्गत होने वाले फर्जीवाड़े से लोगों को बचाने के मद्देनजर संपदा 2.0 सॉफ्टवेयर तैयार करवाया था. इसका लोकार्पण मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव द्वारा 10 अक्टूबर को किया था. तब खरीदी बिक्री और प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री को आसान करने के इसमें दावे किए गए थे. लेकिन आसान होने की जगह लोगों को परेशानियां हो रही है.
क्या-क्या है परेशानियां
नए सॉफ्टवेयर संपदा 2.0 से केवाईसी की पहचान करने के साथ ही जीआईएस मेपिंग, बायोमेट्रिक पहचान और दस्तावेजों का वेरिफिकेशन किया जाता है. इस ऑनलाइन सिस्टम में ई- साइन, डिजिटल सिग्नेचर से डॉक्यूमेंट को कंप्लीट किया जाता है जिसमें गवाह को लाने की अनिवार्यता भी नहीं है. साथ ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भी रजिस्ट्री किए जाने के दावे किए गए है, रजिस्ट्री होने के बाद दस्तावेज की हार्ड कॉपी की बजाय ई कॉपी लोगों को दी जा रही, जिसमें डीजी लॉकर व्हाट्सएप और ई-मेल के माध्यम से कॉपियां उपलब्ध कराई जा रही. कुल मिलाकर जमीन जायदाद संपत्तियों की रजिस्ट्री के बाद सारा रिकॉर्ड मोबाइल की स्क्रीन पर संपदा 2.0 सॉफ्टवेयर में एक क्लिक पर दिखाई दिए जाने के दावे किए गए थे.
सर्विस प्रोवाइडरो ने जताई चिंता
नवभारत से चर्चा में उज्जैन भरतपुरी पंजीयन एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि मित्तल, सचिव सुरेंद्र मरमट, सदस्य भूपेंद्र उपाध्याय ने बताया कि जल्दबाजी में संपदा 2.0 को लागू कर दिया गया है. इसमें अभी कई सारी कमियां है जो कि रजिस्ट्री करने के दौरान मौके पर आती है. पार्टी से ओटीपी लेना होता है, जिसके लिए 30 सेकंड का समय निर्धारित है उतने समय में ओटीपी नहीं प्राप्त किया गया तो पुनः प्रक्रिया करना होती है. वहीं पार्टी के फोटो भी ठीक से नहीं आ पा रहे हैं. लोगों को हार्ड कॉपी नहीं मिल पा रही है. सॉफ्टवेयर जी का जंजाल बन गया है.
वकील भी सहमत नहीं
एडवोकेट ज्ञानेंद्र माथुर ने नवभारत को बताया कि ऑनलाइन के चक्कर में मैनुअली जो काम होता था उसके स्लॉट भी कम कर दिए गए हैं और पंजीयन प्रक्रिया अब जटिल हो गई है. खसरे नहीं चढ़ पा रहे हैं, कहीं ग्रामीण लोग तो की-पैड मोबाइल चलाते हैं और यह सारा काम एंड्रॉयड पर होता है. ऐसे में सामयिक बंधन के मूल दस्तावेज जो बैंक में मॉर्टगेज किए जाते हैं, उसमें भी दिक्कतों का सामना हमें करना पड़ रहा है. जबकि केंद्रीय एक्ट में जो प्रोविजंस है उसमें अलग नियम है और एमपी में संपदा 2.0 के अलग नियम बना दिए गए हैं जो की भारत के अन्य किसी प्रदेश में नहीं है.
पहले 4 फिर 55 जिले
पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग द्वारा इसकी लांचिंग भोपाल स्थित कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में की गई थी. संपदा सॉफ्टवेयर की लांचिंग के पहले इस डिजिटल प्रक्रिया को पायलट प्रोजेक्ट के तहत गुना, हरदा, डिंडोरी और रतलाम जिले में लागू किया गया था. 10 अक्टूबर के बाद प्रदेश के सभी 55 जिलों मे इसे लागू किया गया