यात्रा उन्ही के साथ करनी चाहिए जिसका चित्र -चरित्र एवं भाव दोनों मिलता है: महाराज जी

एनसीएल ग्राउंड बैढ़न-बिलौंजी में श्रीराम कथा के चौथे दिन भगवान श्रीराम के बाल लीला का कथावाचक ने किया वर्णन, श्रोताओं ने कथा का उठाया भरपूर आनन्द

सिंगरौली : एनसीएल ग्राउंड बैढ़न-बिलौंजी में श्रीराम कथा के चौथे दिन भगवान श्रीराम के बाल लीला का प्रख्यात कथावाचक श्री राजन जी महाराज के द्वारा वर्णन किया गया।
कथा वाचक राजन जी महाराज ने अपने मुखार बिन्दु से श्रीराम कथा का वाचन करते हुये कहा कि पूज्य गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि भगवान के अवतरण के उपरांत श्रीधाम अवधि में एक-एक घर में लोग बधाई गा रहे , उत्सव मना रहे हैं। क्योंकि जीव ने अवतार नही लिया। पहली बात जीव का अवतार होता ही नही है। भगवान का जन्म नही होता। जीव जन्म लेता है और भगवान प्रगट होते हैं। जीव यदि यहां है तो पंडाल के बाहर नही हो सकता। उदाहरण के तौर पर राजन यदि यहां कथा गा रहा है तो सड़क पर नही मिल सकता।

लेकिन भगवान यहां भी हो सकते हैं और पंडाल के बाहर भी हो सकते हैं, सड़क पर भी मिल सकते हैं और भगवान आपको धरती-धरती के कोने-कोने में प्रगट हो सकते हैं। क्योंकि वो भगवान हैं। यह मूल अंतर हैं। इसलिए भूल कर कभी जीव में भागवत भाव नही लाना चाहिए। भगवान-भगवान होते हैं और जीव-जीव होता है। श्रद्धा अच्छी बात है। श्रद्धा होनी चाहिए। लेकिन श्रद्धा इतनी न हो जाए कि जीव को भी भगवान मान ले और अपने मूल से भटक जाए। श्री राजन जी महाराज कहते हैं कि याद रखिए मूल से भटकने के बाद सहमूल समाप्त हो जाए। साथ ही महाराज जी आगे बताते हुये कहते हैं कि हम जितने लोग यहां बैठे हैं हम सब मनू महराज के संतान हैं।

इसलिए मनू के संतान होने के कारण हमलोग मनुष्य कहलाए। श्री गोस्वामी जी कहते हैं कि जो अब तक जो आनन्द महोत्सव एक संतान के लिए मनाया जा रहा था अवध का आनन्द अचानक चार गुना बढ़ गया। और इतना बढ़ गया कि उस समय, सुख-सम्पत्ति एवं समाज को सरस्वती, नारायण कहने में भी समर्थ नही हैं। आनन्द वही है जिसको बताया ना जा सके। जहां महाराज जी ने अपने मुखार बिन्दु कहा कि चीनी कितनी मिठी होती है। लेकिन उसको बताया नही जा सकता। उसी प्रकार जीवन में जब भगवत आनन्द की अनुभूति हो जाएगी तो उसको भी बताया नही जा सकता। उसका केवल अनुभव किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि यात्रा उन्ही के साथ करनी चाहिए जिसका चित्र -चरित्र एवं भाव दोनों मिलता है। जिस प्रकार समुन्द्र के किनारे जाने के बाद पता चलता है कि समुन्द्र कितना विशाल है। समुन्द्र में जितना पानी भरा हुआ है।

गुरूदेव महाराज जी कहते हैं कि मेरे राम जी के पास जाने पर उतना आनन्द भरा हुआ है। भगवान आनन्द के सिन्धु हैं और गुरू जी ने कहा कि ये वही हैं तो पूरे जगत को विश्राम प्रदान करेंगे। बिना राम के विश्राम प्राप्त होने वाला नही है। आराम कही भी मिल जाएगा विश्राम नही मिलेगा। विश्राम कब मिलेगा जब राम जी के शरण में पहुंचेंगे तब मिलेगा, राम-राम कहेंगे तब मिलेगा। वही महाराज जी ने विश्राम के बारे में बताते हुये कहा कि किसी भी परिस्थिति में हमारे मन पर परिस्थिति का प्रभाव न पड़े ये विश्राम है। जीवन में कितना भी कष्ट-दुख आ जाए हमारा मन विचलित न हो यह विश्राम है। इसके पूर्व कथा की शुरूआत में धीरेन्द्रधर द्विवेदी-मन्नू द्विवेदी, राजेश दुबे, उपेन्द्र शर्मा, नटरवरदास अग्रवाल, सुनीता सिंह, अशाोक गुप्ता, सीता गुप्ता, प्रभाकर सिंह, धु्रव सिंह बघेल, आकाश कुशवाहा, मनोज द्विवेदी, गायत्री विश्वकर्मा, जयप्रकाश शुक्ला, सहित अन्य ने मंच पर आशिर्वाद प्राप्त किया।

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