नियमों को ताक पर रखकर आरटीओ में हो रहा काम
जबलपुर: क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय आरटीओ में नियमों को ताक पर रखकर पूरी तरह से आरटीओ में कार्य हो रहा है। जहां वाहनों का फिटनेस अब प्राइवेट कर्मचारियों के द्वारा किया जा रहा है जिस पर अधिकारियों और कर्मचारियों की मिली भगत भी चल रही है। उल्लखेनीय है कि जिले में वाहनों का फिटनेस चेक करना साथ ही उनको फिटनेस का प्रमाण देने का मुख्य कार्य आला अधिकारियों के हाथों पर होता है। जहां पर वह वाहनों को ठीक तरीके से चेक करके उसे प्रमाणित करते हैं कि वाहन फिट है कि नहीं। तब जाकर फिटनेस का प्रमाण वाहन संचालक को दिया जाता है। परंतु यहां पर प्राइवेट कर्मचारियों के हाथों से अब जिले के वाहन चेक हो रहे हैं, जिनके द्वारा ही फिटनेस का प्रमाण दिया जा रहा है।
बाबुओं के अंडर में प्राइवेट कर्मचारी
नियमों के अनुसार आरटीओ के अधिकारियों द्वारा ही वाहनों का फिटनेस किया जाता है। जिस पर सभी प्रकार की जांच जैसे इंश्योरेंस, पीयूसी लाइसेंस, आरसी आदि चेक करके वाहनों का फिटनेस किया जाता है। परंतु यहां पर बाबुओं के अंडर में 15 से 20 लडक़े प्राइवेट रूप से आरटीओ में आने वाले वाहनों का फिटनेस चेक कर रहे हैं
जहां नियमों की अवहेलना करते हुए अधिकारियों की नाक के नीचे यह कार्य कराया जा रहा है।
अंडर स्टेट वाहनों से हो रही वसूली
मध्य प्रदेश में वाहनों का फिटनेस करने के लिए सभी जगह पर इसकी सुविधा उपलब्ध कर दी है। परंतु बड़े वाहनों जैसे ट्रक आदि का फिटनेस करने के लिए उन्हें जबलपुर आना पड़ता है। यहां पर उनके वाहनों के सभी दस्तावेज होने के बावजूद भी अधिकारियों कर्मचारियों द्वारा वसूली की जा रही है। जिसमें बाहर से आने वाले वाहनों से पैसे लेकर फिटनेस किया जा रहा है,जिस पर वाहन संचालकों की जेबें ढीली हो रही है।
ओवरहाइट गाड़ी, एक्स्ट्रा डाला को भी दे रहे बता रहे फिट
जानकारी के अनुसार सरकार द्वारा ओवर हाइट गाड़ी और गाडिय़ों में एक्स्ट्रा डाला लगे होने पर उन्हें फिटनेस सर्टिफिकेट प्रमाणित नहीं किया जाता है। परंतु क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय आरटीओ में इस नियम का सही रूप से पालन नहीं हो रहा है। जिस पर आने वाली बड़ी गाडिय़ां, ओवर हाइट, एक्स्ट्रा डाला सभी को फिटनेस चालू कर दिया है। जिसमें अधिकारियों द्वारा ही नियमों की अवहेलना की जा रही है।
इनका कहना है
आरटीओ में रोजाना 25 से 30 फिटनेस हो रहे हैं जहां पर मेरे द्वारा ही सभी फिटनेस कराए जाते हैं।
जितेंद्र रघुवंशी, आरटीओ