फ़सल बीमा और मुआवजा मिलना मुश्किल , क्योंकि अनावरी प्रक्रिया पहले हो गई
सांसत में अन्नदाता !
सांवेर:अर्ली वेरायटी (जल्दी पकने वाली) सोयाबीन की फ़सल में अपेक्षानुरूप उत्पादन से मुग्ध किसानों के हाथों के तोते लेट वेरायटी (विलंब से पकने वाली) सोयाबीन की फ़सल का उत्पादन देखकर उड़ गए हैं. जले पर नमक यह कि कम उत्पादन का दावा भी कृषि और राजस्व अमले और बीमा कंपनी के समक्ष नहीं कर सकते क्योंकि क्रॉप कटिंग (अनवरी) की प्रक्रिया ये विभाग पूरी करवा चुके हैं .
सांवेर क्षेत्र के गंवला के किसान जरदार पटेल ने बताया लेट वेरायटी की 1135 और 1104 किस्म की सोयाबीन 16 बीघा में बोई थी. अर्ली वेरायटी सोयाबीन की पैदावार देखकर उम्मीद थी कि बाद वाली भी अच्छी बैठेगी मगर हार्वेस्टर चला और ट्राली में माल आया तो हाथों के तोते उड़ गए कि डेढ़ मि्ंटल बीघा की पैदावर भी नहीं आई. इसी गाँव के सागीर भाई ने भी 1135 और आरबीएस 16 किस्म की सोयाबीन 25 बीघा में बो रखी थी . सागीर भाई बोले कि फसल और फलन देखकर उम्मीद थी कि 5 मि्ंटल बीघा की पैदावार होगी मगर फ़सल कटी तो हाथों में डेढ़ मि्ंटल बीघा का उत्पादन भी नहीं आया. सांवेर क्षेत्र के ही सोलसिंदी गाँव के फ़िरोज पटेल ने भी बताया कि लेट वेरायटी की सोयाबीन का उत्पादन एक से डेढ़ मि्ंटल से ज्यादा नहीं आया है. ये कहानी केवल इन चंद गांवों की नहीं बल्कि क्षेत्र के हर गाँव के उन किसानों की है जिनने लेट वेरायटी सोयाबीन बोई थी .
और कहीं कम उत्पादन नहीं मिला
लेट वेरायटी सोयाबीन का कम उत्पादन होने की गाँव गाँव से शिकायतें मिलने के विपरीत राजस्व और कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ग्वालियर मुख्यालय से ही प्रत्येक पटवारी हल्के में रेंडमली चार सर्वे नंबरों के खेतों में क्रॉप कटिंग करने का तय कर भेजा जाता है. उन्हीं खेतों में जाकर पटवारी, कृषि अधिकारी और बीमा कंपनी का प्रतिनिधि एक निश्चित वर्ग फुट माप में फसल काटकर उपज का वहीं पर तौल करके प्रति हेक्टर उत्पादन का अनुमान लगाते है. इस साल भी 8-10 दिन पहले क्रॉप कटिंग करवाकर अनावरी निकाली जा चुकी है और कहीं से भी कम उत्पादन नहीं मिला है. दूसरी ओर जिन किसानों को पैदावार बेहद कम मिली है. उनका कहना है कि अधिकारियों ने अनावरी तो अर्ली वेरायटी वाली सोयाबीन की निकाल ली जबकि लेट वेरायटी की सोयाबीन की कटाई तो अब करवाई गई है.
नुकसानी का आंकलन कैसे करें
लेट वेरायटी सोयाबीन बोकर बेहद कम पैदावार आने से पछता रहे किसानों का कहना है कि अर्ली वेरायटी वाली सोयाबीन की पैदावार बेशक सबकी अच्छी आई है. मगर लेट वेरायटी वाली सोयाबीन में तो लागत भी नहीं निकल पाई है. जरदार पटेल ने कहा कि ऐसे वक्त के लिए किसान फसल बीमा के रूपए अदा करते हैं. चूंकि खेतों से सोयाबीन बाहर आ चुकी है तो अब बीमा कंपनी वाले या जिम्मेदार सरकारी अमला नुकसानी का आंकलन भी करे तो कैसे करें. सरकारी तौर पर अनावरी भी 10-12 दिन पहले ही निकाली जा चुकी है. ऐसे में किसान अब पटवारी और तहसील कार्यालय के चक्कर इस उम्मीद में लगाते नजर आ रहे हैं कि उन्हें नुकसानी की भरपाई के तौर पर फ़सल बीमा का लाभ मिल जाए.
इनका कहना है
ग्वालियर से आई रेंडम सूचि के अनुसार पटवारी हल्कों में क्रॉप कटिंग का काम तो हो चुका है उसमें उत्पदान का आंकलन भी हो चुका है. अब यदि लेट वेरायटी सोयाबीन फसल की ये शिकायत आ रही है कि उत्पदान बेहद कम आया है तो इंदौर एसएलआर (अधिक्षक भू अभिलेख) से चर्चा कर कुछ कारवाई करेंगे.
– पूनम तोमर, तेहसीलदार सांवेर
शासन की प्रक्रिया के अनुसार क्रॉप कटिंग में किसी भी गाँव में 3.80 किलो प्रति बीघा की पैदावार से कम की अनावरी नहीं निकली है. अब कुछ किसानों की ये शिकायत कि सोयाबीन का एक या डेढ़ मि्ंटल बीघा या इससे भी कम उत्पादन आया है तो हैरानी की बात है. वैसे अब सोयाबीन फसल खेत में है ही नहीं तो सर्वे भी नहीं हो सकता.
– राजेश धारे, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी